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शवि॑ष्ठं न॒ आ भ॑र शूर॒ शव॒ ओजि॑ष्ठ॒मोजो॑ अभिभूत उ॒ग्रम्। विश्वा॑ द्यु॒म्ना वृष्ण्या॒ मानु॑षाणाम॒स्मभ्यं॑ दा हरिवो माद॒यध्यै॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaviṣṭhaṁ na ā bhara śūra śava ojiṣṭham ojo abhibhūta ugram | viśvā dyumnā vṛṣṇyā mānuṣāṇām asmabhyaṁ dā harivo mādayadhyai ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शवि॑ष्ठम्। नः॒। आ। भ॒र॒। शू॒र॒। शवः॑। ओजि॑ष्ठम्। ओजः॑। अ॒भि॒ऽभू॒ते॒। उ॒ग्रम्। विश्वा॑। द्यु॒म्ना। वृष्ण्या॑। मानु॑षाणाम्। अ॒स्म्भ्य॑म्। दाः॒। ह॒रि॒ऽवः॒। मा॒द॒यध्यै॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (हरिवः) प्रशंसनीय मनुष्योंवाले (शूर) भयरहित (अभिभूते) दुष्टों के अभिभव करनेवाले ! आप (नः) हम लोगों को और (शविष्ठम्) अतिशय बलिष्ठ (उग्रम्) तीव्र (ओजः) प्राणधारण को और (ओजिष्ठम्) अत्यन्त पराक्रमयुक्त (शवः) बल को (आ, भर) सब प्रकार से धारण करो और इससे (मानुषाणाम्) मनुष्य जाति में वर्त्तमानों के सम्बन्ध में (विश्वा) सम्पूर्ण (वृष्ण्या) उत्तम जनों के लिये हितकारक (द्युम्ना) प्रकाशित यशों वा धनों को (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (मादयध्यै) आनन्द देने को (दाः) दीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप राज्य के पालने योग्य गुणों को धारण करके न्याय से राज्य का पालन करिये ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे हरिवः शूराऽभिभूते ! त्वं नः शविष्ठमुग्रमोज ओजिष्ठं शव आ भराऽनेन मानुषाणां विश्वा वृष्ण्या द्युम्नाऽस्मभ्यं मादयध्यै दाः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शविष्ठम्) अतिशयेन बलिष्ठम् (नः) अस्मान् (आ) (भर) धर (शूर) निर्भय (शवः) बलम् (ओजिष्ठम्) अतिशयेन पराक्रमयुक्तम् (ओजः) प्राणधारणम् (अभिभूते) दुष्टानामभिभवकर्त्तः (उग्रम्) तीव्रम् (विश्वा) सर्वाणि (द्युम्ना) द्योतमानानि यशांसि धनानि वा (वृष्ण्या) वृषभ्यो हितानि (मानुषाणाम्) मनुष्यजातिस्थानाम् (अस्मभ्यम्) (दाः) देहि (हरिवः) प्रशस्ता हरयो मनुष्या विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (मादयध्यै) मादयितुम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे राजंस्त्वं राज्यपालनार्हान् गुणान् धृत्वा न्यायेन राज्यं पालय ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू राज्य पालनकर्ता या दृष्टीने न्यायपूर्वक राज्याचे पालन कर. ॥ ६ ॥